दिल्ही उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि फीस का भुगतान न करने के आधार पर छात्रों को परीक्षा में शामिल होने या कक्षाओं में भाग लेने से स्कूल प्रशासन नहीं रोक सकता। एक निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूल के 10वीं कक्षा के एक छात्र द्वारा की गई याचिका की सुनवाई पर अदालत ने यह टिप्पणी की है। बता दें कि, फीस जमा नहीं करने के कारण छात्र को सीबीएसई की आगामी बोर्ड परीक्षा में शामिल नहीं होने दिया गया था।
छात्र के जीवन के समान अधिकारों का उल्लंघन
मीडिया अहेवाल के अनुसार, सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा ने कहा कि एक छात्र को परीक्षा, विशेष रूप से बोर्ड परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं देना, उसके जीवन के समान अधिकारों का उल्लंघन है। अदालत ने कहा कि फीस का भुगतान न करने के आधार पर किसी छात्र को परीक्षा में बैठने से रोकना भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत बच्चे के अधिकारों का उल्लंघन होगा। कोर्ट ने स्कूल प्रशासन को निर्देश दिया कि छात्रा को बोर्ड परीक्षा में शामिल होने दिया जाए।
याचिका में छात्र ने अदालत को बताया कि कोविड-प्रेरित लॉकडाउन के कारण उसके पिता को आर्थिक नुकसान हुआ था। इस कारण वह नियमित रूप से स्कूल की फिस का भुगतान करने में असमर्थ था। सहानुभूतिपूर्ण विचार रखते हुए न्यायालय ने कहा कि एक छात्र को शैक्षणिक सत्र के बीच में इस तरह के उत्पीड़न का शिकार नहीं बनाया जा सकता है।