9 साल की देवांशी ने अपने पिता की कंपनी का सालाना टर्नओवर 100 करोड़ होने के बावजूद सुखसाहेबी छोड़ के दीक्षा ग्रहळ की है। सुरत के हीरा व्यापारी की बेटी ने 9 साल की उम्र में अपनी सारी सुख-सुविधाओं को त्याग कर संन्यास का मार्ग अपना लिया है और दीक्षा ले ली है। सूरत के हीरा व्यापारी मोहनभाई सांघवी की पोती और धनेश-अमीबेन की 9 साल की बेटी देवांशी ने दीक्षा ले ली है। देवांशी ने 35 हजार से ज्यादा लोगों की मौजूदगी में जैनाचार्य कीर्तिशसूरीश्वर महाराज से दीक्षा ली। भव्य रथ में चार हाथी, 20 घोड़े, 11 ऊँट और इसके अलावा ढोल-नगाड़ों और विभिन्न संगीत धुनों का जुलूस के साथे दिक्षा समारोह हुआ था।
जीवन में कभी मोबाइल का प्रयोग नहीं किया
देवांशी ने अपने जीवन में कभी मोबाइल का इस्तेमाल नहीं किया और न ही उन्होंने टीवी-थिएटर देखा। उम्र में 500 किमी तीर्थ स्थलों की यात्रा की और कई जैन शास्त्रों को पढ़कर तत्त्व ज्ञान को समझा। हालांकि इस उम्र में बच्चे खिलौनों से खेलने में अपना समय बिताते हैं, लेकिन एक हीरा व्यापारी की बेटी देवांशी संघवी करोड़ों की मालकिन बन सकती थी फिर भी वह तपस्वी बन गई हैं।
हीरा व्यापारी धनेश संघवी की दो बेटियों में बड़ी देवांशी हैं जबकि छोटी बेटी काव्या महज पांच साल की है। देवांशी ने 367 दीक्षा कार्यक्रमों में भाग लिया है। जिसके बाद उन्होंने जैन धर्म अपनाने का फैसला किया। परिवार और रिश्तेदारों का मानना है कि हीरा व्यापारी की बेटी देवंशी बचपन से कभी किसी रेस्टोरेंट में नहीं गई। साथ ही देवांशी ने आज तक यह फिल्म कभी नहीं देखी है। धनेशभाई अपनी पत्नी अमीबेन और दोनों बेटियों के साथ धार्मिक निर्देशों के अनुसार एक साधारण जीवन शैली का पालन करते हैं। देवांशी बचपन से ही दिन में तीन बार पूजा करती थीं।