जैसे-जैसे ऋतुएँ बदलती हैं, वैसे-वैसे पर्यावरण के आधार पर शरीर पर भी प्रभाव पड़ता है. शरीर में पित्त और कफ भी बढ़ने और घटने लगते हैं. शरीर की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए आहार में परिवर्तन करने की आवश्यकता है. इससे मौसमी बीमारियों से बचा जा सकता है.सादा और सुपाच्य आहार लेंग्रीष्म ऋतु का अर्थ है कि गर्मी के मौसम में सूर्य बलवान रहता है और अपने प्रभाव से सारी जीवन शक्ति को नष्ट कर देता है. इस समय गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट सुस्त रहता है जो बारिश के मौसम की शुरुआत के साथ और ज्यादा सुस्त हो जाता है. सादा पानी, फलों का रस, दही, छाछ के साथ-साथ सादा भोजन, अत्यधिक मसालों से परहेज, सब्जियां और तली हुई चीजें, चावल और गेहूं से बनी रोटी खाने के लिए उपयुक्त हैं.वर्तमान में लोग बारिश के कारण गर्म चीजों का अधिक सेवन करते हैं. इस समय लोगों को चर्म रोग, रैशेज, मुंहासे, रक्त संबंधी रोग और उच्च रक्तचाप से पीड़ित होने की संभावना अधिक होती है. बारिश का मौसम आते ही हवा में नमी बढ़ जाती है. यह वातावरण के तापमान को कम करता है और ठंडा भी रखता है. आयुर्वेद के अनुसार बारिश के मौसम में वायु प्रदूषण का प्रकोप बढ़ जाता है. मौसमी बदलाव से कफ, वायरल फीवर, कंजक्टिवाइटिस और आर्थराइटिस जैसे कफ का खतरा बढ़ जाता है. इससे बचने के लिए बरसात के मौसम की शुरुआत से ही खान-पान में बदलाव करें. हम जो भी खाना खाते हैं, कम मसालेदार खाना फायदेमंद साबित होगा. कफ के खतरे से बचने के लिए आपको तुलसी और अदरक का सेवन शुरू कर देना चाहिए.